वृद्ध सज्जनो अब
तो सम्भलो ,अपने मन को कुछ तो बदलो |
समय के प्रवाह को
देख कर चलो ,नई पीढ़ी को को
देख कर मत उछलो |
अरे तुम कहाँ खो
गए , अपनों मैं पराये हो गये
साँझ ढलने से पाहिले ही सो गए |,अरे तुम क्या थे क्या हो गये |
अपनी बीती उन्हें
मत सुनाओ ,अपनी उपलब्धियाँ मत गिनाओ|
उन्हें नहीं तुम
से कोई सरोकार ,तुम तो हो गये
उनके लिए बेकार |
तुम्हारी बातों पर नहीं करते वे विश्वास ,फिर क्यों रखते
हो कोई आस |
तुम्हारे कमरे से
आती है उनको बास, जब चलती है जोर
जोर से तुम्हारी श्वास |
यही तो संसार का
नियम है ,जीवन की अवस्था का
अधिनियम है |
वह तो किताबों
में ही लिखा है, व्यवहारिकता को
क्या तुमने नहीं पढ़ा है |
ये टूटे रास्तों
पर नहीं चलेंगे ,ये तो आगे ही आगे
बढ़ते रहेंगे |
इन्हे तुम न
स्पर्श कर सकोगे ,क्यों फिर इनसे
आस लगाना चाहोगे |
मुश्किलें झेल कर
उन्हें योग्य बनाया ,उन्होंने उसे
तुम्हारा फर्ज बताया |
उपलब्धियाँ अपने
ही खाते में गिनाई ,क्यों करेंगे वे
तुम्हारी सुनवाई |
ये तो थीं
तुम्हारी भावी आशाएं ,जो बन गई है अब
संवेदनाये |
तुम अपना शेष
जीवन बिताओ ,उठो अपने में आशा
विश्वास व जोश लाओ |
अपने अनुसार अपना
जीवन बिताओ ,मनन चिंतन में
धयान लगाओ |
स्वयं में कितना
बदलाव पाओगे ,नव उमंग -तरंग से
भर जाओगे |
न रहो किसी पर
आश्रित ,न समझो स्वयं को
निराश्रित |
हम सबका है एक
परिवार ,मिलो बैठो करो विचार |
मत समझो अपने को
मुर्दा ,हटाओ असमर्थता का पर्दा |
झाड़ो अपने ऊपर
पड़ा गर्दा ,तय करना है अभी लम्बा
रास्ता |
शेष जीवन समाज
सेवा में लगाओ ,धूप सेंक कर समय
व्यर्थ न गँवाओ |
नहीं है यह समय
आराम का ,नेहरू जी ने कहा है यह समय है
काम का |
तुमसे कहनी है एक
बात ,अप्रिय वाणी को दो विराम |
करने दो बच्चों
को स्वतंत्र रूप से काम ,उन्हें पाने है जीवन में नए नए आयाम |
जीतो प्रेम से
सभी का मन हिल-मिल कर रहो बच्चो के साथ खेलो कैरम |
स्वयं बदलेगा
तुम्हारा भी जीवन क्रम ,खुशहाल होगा सारा घर आँगन |
संसार में वृद्धो
की दशा है सामान ,बिरले ही पाते है परिवार में मान सम्मान |
छोड़ो अपनी
असमर्थता का गुमान ,क्यों समझते हो अपने को बेकार सामान |
अपना आशियाना
स्वयं बनाओ ,अपना घर नए सिरे से सजाओ |
उसमे नया सामान
डलवाओ ,अपने कमरे को नए पर्दो से सजाओ |
कभी तुम्हारे
ऑफिस से लौटने की राह देखी जाती थी ,अब छूठ के रास्ते ढूंढे
जाते है |
हम सब की यही
कहानी है ,बैठ कर एक दूसरे को सुनानी है |
आगे बढ़ो अपना
भाग्य बनाओ ,जीवन सुख शांति से बिताओ
मत रखो किसी से
कोई आशा ,दूर करो मन की निराशा |
जिन वृद्धो को
नहीं मिलता सम्मान ,वे सहते है जीवन में अपमान |
हमसे जुड़े वे आकर
ससम्मान ,हम करेंगे एक दूसरे का आदर मान |
खँगालो अब अपना
जीवन ,वही दिलाएगा तुम्हे आश्वासन |
घर में ही लगाओ
तुम आसन ,मिलेगी शांति परम पावन|
आओ अपने घर लौट
आओ दौड़ नहीं सकते तो चल कर ही आओ |
इधर उधर की बातों
में मत भरमाओ ,अपना जीवन सुख मय बनाओ |
डूबते सूर्य को
नहीं करते नमस्कार ,इसीलिए होता है
बुजुर्गो का तिरस्कार |
भूल गए सब आचार
विचार ,तभी तो बजुर्गो का नहीं
कर पाते सत्कार |
हम सब एक दूसरे
के लिए हैं विशिष्ट ,तभी तो कहलाते
हैं नागरिक वरिष्ठ |
हम तो सदा से ही
बने रहे सबके प्रति शिष्ट |हमने नहीं किया
किसी का भी कभी अनिष्ट |
अरे बुजर्गो कल
की बात तुम्हे याद नहीं ,बरसो की बात करते
हो |
मरने से पाहिले
मत सोचो मृत्यु ,जीवन में दुनिया
को नए सिरे से देखो |
आओ ऐसा कानून
बनवायें वृद्धो को उनके बच्चे उनको घर से न निकलवाए |
वरिष्ठ नागरिक
दिवस की यह सौगात ,आओ हम सब मिल बैठ
करे इस विषय पर बात |
समस्याएं
सुलझेंगी सब एक साथ ,मिलेगी सबको
शांति जब करेंगे एक दूसरे से संवाद |
-सवि
सार्थक विचार ..... हौसला बना रहे ....
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