पर्वत का सन्देश
आया है सागर के लिए ,
अब नहीं मिल
पाएंगे हम नदियों के जरिये ,
बस मेरी चिठ्ठी
ही तुम्हे राहत पहुंचाएगी ,
अगर कभी भूले
भटके तुम तक पंहुच पायेगी |
प्रदूषित हो गया
हूँ मैं और घट गया है मेरा आकार,
अब नहीं हो
पाएंगे हमारे सपने कभी साकार ,
तुमसे मिलने की
चाहत रहती है मेरे मन में अपार ,
क्या कभी मिल
पाएंगे हम इस पार या उस पार |
तुम मेरी दशा का
अनुमान नहीं लगा पाओगे ,
क्या अब भी मेरा
सन्देश पाकर उसी तरह मुस्कारोओगे
तुम्हारे ज्वार
भाटे में ही तो तुम्हारी चाहत छिपी है ,
उसी के उतार चढाव
में तुम्हारी आत्मा बसी है ,
हे सागर तुम तो
सदा से ही मुझे जानते व समझते हो ,
फिर भी तुम हमसे
ऐसी आशा क्यों रखते हो |
मैं तो हर तरह
तुमसे मिलने की आशा रखता हूँ ,
अपनी नदियों के
द्वारा ही तुम तक पहुँचता हूँ ,
पर अब तो मुझे
खंडित कर बांध बन गए हैं,
मेरा तो अस्तित्व
ही मानव ने मिटा दिया हैं |
मेरे सुहावने
जंगल काट काट कर अपने घर भर लिए है
जड़ी बूटियों का
कर दिया विनाश अब मुझसे क्या रखते हो आस ,
यद्यपि वरुनावत
के रूप में मैने भी आक्रोश दिखाया है ,
पर उससे भी मानव
सबक नहीं सीख़ पाया है |
अब तुम ही पलट कर
अपना उग्र रूप दिखाओ ,
सुनामी की तरह
कहर ढा कर इनको कुछ समझाओ |
पर्वतो को पर्वत
ही रहने दो बांध मत बनाओ ,
वरना ये अपना
भयंकर रूप दिखाएंगे विकराल बन जायेंगे
नदियों को सुरंग
में डाल कर मानव जीवित नहीं रह पायंगे ,
प्रकृति के
सुरम्य वातावरण से वंचित हो जायेंगे|
- सवि
२०१० में
प्रकाशित 'नारी' काव्य संकलन में से
प्राकृति को खुद ही बचाना होगा ... कोई दूसरा नहीं आने वाला ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
बहुत सुंदर रचना. नदी की वेदना हम कब सुध लेंगे.
जवाब देंहटाएंअपनी नदियों के द्वारा ही तुम तक पहुँचता हूँ ,
जवाब देंहटाएंपर अब तो मुझे खंडित कर बांध बन गए हैं,
मेरा तो अस्तित्व ही मानव ने मिटा दिया हैं |
मेरे सुहावने जंगल काट काट कर अपने घर भर लिए है
जड़ी बूटियों का कर दिया विनाश अब मुझसे क्या रखते हो आस ,
यद्यपि वरुनावत के रूप में मैने भी आक्रोश दिखाया है ,
पर उससे भी मानव सबक नहीं सीख़ पाया है |
अब तुम ही पलट कर अपना उग्र रूप दिखाओ ,
सुनामी की तरह कहर ढा कर इनको कुछ समझाओ |
बहुत सुन्दर रचना ! हकीकत बयां करते शब्द
बहुत सुन्दर रचना ,सावित्री जी। प्रकृति और मानव के बीच ये जंग हमेशा से चलती आई है। इंसान हमेशा से ही प्रकृति पर काबू पान चाहता है और उसे कई बार मुंह की खानी पड़ी है लेकिन फिर भी कुछ सीख नही पाया है। जैसा की दिगंबर जी ने कहा हमें खुद ही अपने स्तर पर कुछ करना पड़ेगा । बहरहाल , इस सुन्दर कविता के लिए साधुवाद स्वीकार करने की कृपा करें ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाएँ पढ़ने के लिए धन्यवाद |
हटाएंहम सब को नदी की पवित्रता बचाने की कोशिश करनी चाहिए |धन्यवाद |
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