अपने पूज्य पिताजी
को
मेरे पूज्य
पिताजी थे बड़े
गुण वान ,रूद्र दत्त शास्त्री
था उनका नाम |
करती हूँ
में सदा उन्हें
प्रणाम ,पुष्पांजलि
अर्पित करती हूँ
ससम्मान |
पिता थे
उनके पंडित विद्यादत्त
जी महान ,
माता लीला
वती जी को
वे करते थे
प्रतिदिन प्रणाम |
ग्राम नौटियाल
पट्टी गग्वाडस्यूं के थे वे
निवासी ,पर बचपन में
ही बना दिए
प्रवासी |
पिता श्री
पटवारी थे जौनसार
,सभी करते
थे उनका आदर
सत्कार |
मानते थे
उन्ही को ही
अपनी सरकार ,वाही से जुड़े
ऋषि दयानद जी
के विचार |
अपने बड़े bêते
को पड़ने भेजा
गुरकुल ,ताकि ऊँचा कर
सके अपना कुल |
तपाया पुत्र ने
शिक्षा प्राप्ति हेतु
अपना जीवन सकुल ,निभाया
ब्रम्हचर्य का संकल्प
|
बहुत छोटी
अवस्था में भेजा
था उन्हें गुरकुल
,जहा पाई
उन्होंने शिक्षा व मिल i
वाही
से दीक्षा |
स्वामी श्रद्धानन्द
जी के वे
शिष्य बने ,अर्पित किया जीवन
आर्य धर्म के
लिए |
ज्वाला पर
गुरुकु l में गुरु
के सन्मुख किया संकल्प
,समर्पित किया
जीवन आर्य धर्म
के प्रचार के
लिए
वेदो के
प्रचार में वे
सदा रहे सफल ,शास्त्रार्थ
में कोई नहीं
था उनका विकल्प
|
वे थे
महान वेदो के
ज्ञानी ,योगासन
प्राणायाम करते थे
वे ध्यानी |
जीवन में
रहे वे बड़े
ही मानी ,उनकी विद्व्ता का
नहीं था कोई
सानी ||
गुरकुल से
जब दीक्षा पाई ,तब
उन्हें घर की
सुधि आई |
नंगे पावं
मुंडा सिर वे अपने
घर ए ,परिवार वाले भी
उन्हें पहिचान न
पाये |
बहिनो ने
कहा माता से
एक जोगी आया
है ,गावं के किनारे
बैठा हमारा घर
पूछ रहा है |
वह वंहा
पर बैठा पढ़ता
रहता है ,पर कुछ कुछ
हमारे छोटे भाई
जैसा दिखता है |
दोेड़ी दोेड़ी
आई माता जोगी
के पास ,जो बैठा था
खेतो के किनारे
नदी के पास |
साफ कर
रहा था वंहा
पर उगी घास ,
वंहा
पर कोई नहीं
था उसके आस
पास |
जोगी के
पास जाकर बैठ गयी
थी माता ,बोली हे जोगी
इस गांव से
तुमहरा क्या है
नाता|
यहाँ तो जोगियों का
सदा लगा रहता
है ताँता ,क्या है यहाँ
कोई तुम्हारी माता
पिता या भ्राता
|
प्रभु की
थी कैसी अनोखी लीला ,अपने
ही बेटे को
नहीं पहिचान पाई
माता लीला |
बोली बेटा
बताओ तुम हो
कोण ,क्यों बैठे हो
यहाँ पर हो कर मोन ?|
तभी पिता
आए खेतो से निबट ,देखा
एक साधु बैठा
है पत्नी के
निकट |
दिखता था
वह ब्रम्हचारी गजब ,लगता
था किसी सोच
में विकट |
पिता जब
गए जोगी के
पास ,रखा उन्होंने अपने
माथे पर हाथ |
बोले लीला
यह तुम्हारा ही
जाया hai ,ईश्वर की
कृपा से बेटा
गुरुकुल से पढ़
कर घर आया है |
तब पुत्र
ने किया माता
पिता को दंडवत
प्रणाम ,पिता ने दिया
अपने पुत्र को
आयाम |
माता ने
बड़े प्रेम से
बेटे को गले
लगाया ,वर्षो बाद अपना
वात्स्ल्य दर्शाया |
घर ले
जा कर भाई
बहिनो से उसे
मिलवाया , तुरंत एक नाई
बुलवाया |
बेटे को गंगा
स्नान करवाया ,तब जाकर बेटे
ने हवन करके
ही भोजन खाया |
|
बेटे ने
जब देखि घर
की दशा ,वह पुनः खेतो
की और जाने को विवश
हुवा |
पिता ने
अपने ही आँगन
में एक झोपड़ी
बनवाई ,जिसमे बेटे की खाट
लगवाई |
सोचा कैसे
इसे गृहस्थी में
प्रवेश करवाये ,किसको विवाह का
सन्देश भिजवाये |
तभी पंडित
जी लेकर आये
जन्मपत्री ,श्री
बिंदुमाधव जी की थी
एक कुंवारी पुत्री
|
माँ बहिनो की थी
वह प्यारी ,पिता की सेवा करती थी
बेचारी |
सद्य मातृ मृत्यु सही थी उसने
भारी, घर की थी उस पर
पूरी जिम्मेदारी|
पटवारी जी ने
भिजवाया सन्देश मान गए नाजिर जी उनका आदेश |
दोनों को ही थी
एक दूसरे की दरकार,करने लगे वे पत्र
ववहार |
सवि
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