सोमवार, 16 जून 2014

बरस बाद


बरस बाद

बरस बाद फिर वही  घडी  वही दिन आया है |
यात्रियों का सैलाब पुनः केदार घाटी  की ओर बढ़ आया है |
इनके मन में न कोई डर है न किसी  भी तरह का खौफ है | 
 ये तो आस्था व विश्वास का सहरा ले कर बड़ी दूर दूर से आये है |
यही तो भारतीय संस्कृति  की विशेषता है 
मनुष्य विपत्तियों को झेल कर भी जीवन में आगे ही आगे बढ़ता रहता है |
ये तीर्थ यात्री भी भारत भूमि के ही निवासी है |
कुछ दर्शनार्थी तो दूर देशो से आये प्रवासी है |
वे भी मन में केदारनाथ  के दर्शन  की लालसा लिए आगे बढ़ रहे  है |
एक हाथ में मोटा सा डंडा तथा कंधे पर  कपड़ो   के साथ धर्म  का झंडा लिए है|
केदार भगवान इनके साथ न्याय करेंगे  ऐसा इनका अपने मन में विश्वास है |
ये श्रद्धा  व भक्ति की भावना से ही यहाँ तक  पँहुच पाये है |
बरस बाद अपनी यादो  को पुनः ताजा कर रहे है |
कुछ लोग तो उस सैलाब को भूल भी नहीं पा रहे  है |
जिन्होंने अपने परिजन अपने सामने ही प्रलय की भेंट चढ़ाये थे |
                                                                                                                                                                                                       - सवि

2 टिप्‍पणियां :

  1. ​डर और आशंकाओं के बीच भी अगर ये श्रद्धालु केदारनाथ तक पहुँच इनकी श्रद्धा और हिम्मत दौनों को प्रणाम करने का मन करता है ! बहुत सुन्दर पोस्ट

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  2. जहां आस्था होती है वहां दर नहीं रहता ... फिर भोले नाथ के द्वार जाने का दर ... कभी नहीं ...

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