बरस बाद
बरस बाद फिर वही घडी वही दिन आया है |
यात्रियों का सैलाब पुनः केदार घाटी की ओर बढ़ आया है |
इनके मन में न कोई डर है न किसी भी तरह का खौफ है |
ये तो आस्था व विश्वास का सहरा ले कर बड़ी दूर दूर से आये है |
यही तो भारतीय संस्कृति की विशेषता है
मनुष्य विपत्तियों को झेल कर भी जीवन में आगे ही आगे बढ़ता रहता है |
ये तीर्थ यात्री भी भारत भूमि के ही निवासी है |
कुछ दर्शनार्थी तो दूर देशो से आये प्रवासी है |
वे भी मन में केदारनाथ के दर्शन की लालसा लिए आगे बढ़ रहे है |
एक हाथ में मोटा सा डंडा तथा कंधे पर कपड़ो के साथ धर्म का झंडा लिए है|
केदार भगवान इनके साथ न्याय करेंगे ऐसा इनका अपने मन में विश्वास है |
ये श्रद्धा व भक्ति की भावना से ही यहाँ तक पँहुच पाये है |
बरस बाद अपनी यादो को पुनः ताजा कर रहे है |
कुछ लोग तो उस सैलाब को भूल भी नहीं पा रहे है |
जिन्होंने अपने परिजन अपने सामने ही प्रलय की भेंट चढ़ाये थे |
- सवि
डर और आशंकाओं के बीच भी अगर ये श्रद्धालु केदारनाथ तक पहुँच इनकी श्रद्धा और हिम्मत दौनों को प्रणाम करने का मन करता है ! बहुत सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंजहां आस्था होती है वहां दर नहीं रहता ... फिर भोले नाथ के द्वार जाने का दर ... कभी नहीं ...
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