प्रकृति का यह
दैवीय प्रकोप
कभी अनावृष्टि कभी अतिवृष्टि का संयोग
मानव को भी झेलना पड़ता है यह सब
यही तो लिखा है उसके भाग्य में सब |
कभी अनावृष्टि कभी अतिवृष्टि का संयोग
मानव को भी झेलना पड़ता है यह सब
यही तो लिखा है उसके भाग्य में सब |
हम सब प्रकृति पर
ही तो निर्भर है
झर झर झरने बहते निर्झर है
लेकिन मानव जब गुरता दिखाता है
तब नियति अपना उग्र रूप धारण करती है |
झर झर झरने बहते निर्झर है
लेकिन मानव जब गुरता दिखाता है
तब नियति अपना उग्र रूप धारण करती है |
यही मानव आपदा से हार जाता है
यद्यपि प्रकृति
से उसका निकट का नाता है
तभी बड़ी बड़ी
नदियों पर बांध बनाता है
उसने अपने नाकाम
इरादो को साधा है |
आज नदियों के
भयंकर उफान देख कर
मानव क्यों
घबराता है
तुम इन तूफानों
को कैसे झेल पाओगे
क्या अब भी
प्रकृति को समझ नहीं पाओगे
मानव ने जो
प्रकृति का दोहन किया है
आज उसने भी अपना
बदला ले लिया है
जब तक मानव सीमा
में रहेगा
तभी प्राकृतिक
सुख को आजीवन पा सकेगा |
- सवि
आज नदियों के भयंकर उफान देख कर
जवाब देंहटाएंमानव क्यों घबराता है
तुम इन तूफानों को कैसे झेल पाओगे
क्या अब भी प्रकृति को समझ नहीं पाओगे
अगर प्रकृत्ति का सम्मान नहीं होगा तो वो तो अपना रौद्र रूप दिखलाएगी ही ! बहुत सार्थक शब्द लिखे हैं आपने आदरणीय सवि जी