शुक्रवार, 7 मार्च 2014

बेटी

पूजे कई देवता मैंने तब तुमको था पाया |
क्यों कहते हो बेटी को धन है पराया |
यह तो है माँ की ममता की है छाया |
जो नारी के मन आत्मा व शारीर में है समाया ||

मैं पूछती हू उन हत्यारे लोगों से |
क्यों तुम्हारे मन में यह ज़हर है समाया |
बेटी तो है माँ का ही साया |
क्यों अब तक कोई समझ  न पाया |

क्या नहीं सुनाई देती तुम्हे उस अजन्मी बेटी की आवाज़ |
जो कराह रही तुम्हारे ही अंदर बार-बार |
मत छीनो उसके जीने का अधिकार |
आने दो उसको भी जग में लेने दो आकार | 

भ्रूण हत्या तो ब्रम्ह्त्या होती है |
उसकी भी कानूनी सजा होती है |
यहाँ नहीं तो वहाँ देना होगा हिसाब |
जुड़ेगा यह भी तुम्हारे पापों के साथ ||

अजन्मी बेटी की सुन पुकार |
माता ने की उसके जीवन की गुहार |
तब मिल बैठ सबने किया विचार |
आने दो बेटी को जीवन में लेकर आकार |

तभी ज्योतिषों ने बतलाया |
बेटी के भाग्य का पिटारा खुलवाया |
यह बेटी करेगी परिवार का रक्षण |
दे दो इस बार बेटी के भ्रूण को आरक्षण |

11 टिप्‍पणियां :

  1. Aapne sahi tathyon pr roshni daali Savitri ji..saadar naman aapki rachna ko..! Samajik muuddon pr main bhi kai bar likh chuka hun..achha laga padhkar..!

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  2. ati uttam.....

    plz visit here also..
    anandkriti
    anandkriti007.blogspot.com

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  3. बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक रचना,आभार।
    आप अपने कमेंट से वर्ड वेरिफिकेसन को हटा लें, पाठको को कमेंट करने में आसानी होगी।

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