बुधवार, 12 मार्च 2014

होली

इश्क़ की आँख मिचौली भी देखी |
उनकी कई बनी होली में हमजोली भी देखी |
उनके संग हमने भी खेली थी होली |
पर हमारी तो रही खाली की खाली झोली | |

होली का रंग देखो उन पर कैसा चढ़ा |
जब रंग दिया था हमने उनका सुन्दर मुखड़ा |
तब तो वे भी उस दिन कुछ भी नहीं बोली |
यही तो है होली में होली की होली ||

पर जब हम गये थे उनके घर मिलने होली |
वो तो मगन थी हमारे रफ़ीक़ों के संग , कर रही थी ठिठोली |
हम वहां जाकर भी उनसे क्या कह पाते |
वे तो नशे में मस्त थी अपनों के साथ करके बातें ||

होली के मौसम में ही कहते हैं इश्क़ पनपता है |
वह हर शख्स पर अपना अलग-अलग असर करता है |
होली का रंग तो कभी चढ़ता है चोखा |
कभी खाते है होली के रंग रंगने में धोखा ||

किसी किस्मत वाले की होली होती है रंगीन |
कोई तो बेचारा होली में भी रहता है गमगीन |
चलो उन दुखियारों का भी दुःख करें हम दूर |
हमारी भी इच्छायें पूरी होंगी जरुर ||

हमने तो सजाई होली पर रंगीन रंगोली |
पर उनकी कही बात तो लगी हमें जैसे गोली |
पर कौन परवाह करता है, होली में किसी की बोली |
वह तो न जाने कब हमें छोड़ अपने प्रिय की होली ||

श्रीमती सावित्री नौटियाल काला द्वारा रचित 'सप्तपदी' काव्य संकलन में से





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