"उद्धव और गोपियाँ "
ये भी कोई कायदा
है ,वायदा न पूरा किया |
भेजा इक दूत जो
अवधूत जैसा लगता |
ज्ञान ध्यान की
तो बात करे सात कोस आगे बढ़ |
स्नेहसिक्त बात
सुन पीछे पीछे हटता |
वृन्दावन की
पवित्र गलियों में वह जोगी हमें आते जाते तकता |
प्रेमसिक्त बातें
तो वह बिलकुल भी नहीं समझाता |
ज्ञान धयान
मुक्ति की बात तो वह बढ़ चढ़ करता |
गोपियाँ तो है
कृष्ण भक्ति में रमी हुई |
ज्ञान ध्यान मुक्ति योग वे कुछ नहीं समझती |
आन बान शान की वे
है चाहत बनी हुई |
कृष्ण भक्ति रस
में है आकंठ डूबी हुई |
ज्ञान ध्यान ब्रम्ह ज्ञान वे नहीं सब जानती |
आज भी गोकुल की
गलियों में कृष्ण की बाट ही है जोहती |
वायदा न पूरा
किया कृष्ण का यह दोष है |
हम तो रमी है
कृष्ण भक्ति रस सागर में |
चाहत नहीं है
हमें ज्ञान और मुक्ति की |
पी चुकी है हम
कृष्ण भक्ति रस इसी जनम में |
आओ सखी इस जोगी
का कमंडल बना दे |
इसे आज मथुरा की
राह भी दिखा दे |
वृन्दवन की
निकुंजन गलियन में |
इस जोगी को भक्ति
का तो पाठ पढ़ा ही दें |
चाहत की राह में
तो हम सब एक है |
राधा जी की
बात तो सबसे निराली है |
कृष्ण के प्रेम
सिक्त रस की तो वे स्वयं ही प्याली है |
मानती वे अपने को
कृष्ण की ही आली है |
बालि सी उमर से
ही कृष्ण भक्ति रस में डूबी हुई |
वही तो गोपियन
में सर्वशक्तिशाली है |
यमुना के निकुंजन
गलियन में बैठी हुई |
भक्तिभरे बगिया
की वही इक माली है |
उद्धव ने जाकर जब
कृष्ण से गोपियों की बात कही |
डूब गए कृष्ण भी
गोपियों के प्यार में |
सूक्ष्म रूप धर
के वे पहुंचे वे गोपियों के पास |
राधा को मनाया
संग रास भी रचाया |
अनेक रूप धर के
गोप गोपियों को भी रिझाया |
कृष्ण का यही
सुन्दर मनोहारी रूप सबको सुहाया |
उद्धव की नीरस सी
बातें तो किसी को समझ न आई |
दूत के रंग में
तो गोपियाँ न रंग पाई |
उद्धव तो समझ गए
कृष्ण भक्ति शक्ति को |
ज्ञान कर्म योग
सिद्धि छोड़ बैठ गए कृष्ण भक्ति को |
कृष्ण को जगाया
और गले से लगाया |
उन्ही की भक्ति
रस के गीत गा गा कर सबको सुनाया |
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