शनिवार, 31 मई 2014

नारी दुर्दशा

नारी दुर्दशा की कहानी सुन सकोगे उसकी जुबानी |
कैसी की दरिन्दो ने उसके साथ हिंसक मनमानी ||
कर दिया उस मासूम की आत्मा को जार-जार |
क्या हो सकता था उसकी असहनीय पीड़ा का उपचार ||
वह भी किसी की बेटी थी बहिन थी, उसके भी थे जीने के कुछ अरमान |
जो हो गए एक शाम हब्शी दरिन्दो द्वारा नाकाम |
वह तो बन गई थी एक जीवित दर्द भरी लाश |
उसमे नहीं रह गई थी जीने की आस ||
उसकी दशा देख सुन कर उसकी पीड़ा का कर सकोगे जरा अनुमान |
अब केवल नारों जुलूसों से नहीं चलेगा काम |
ऐसी अमानुषिक दुर्घटनाओं की पुनः आवृति हो |
हम सबको कुछ सार्थक कार्य करना होगा ||
सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा हेतु संविधान में परिवर्तन करना होगा |
बलात्कारियों को कठोर से कठोर सजा दिलाने का प्रावधान रखना होगा |
वार्ना आधी आबादी के आक्रोश को रोकना अब संभव नहीं |
दोषियों को अधिक दिनों तक जीवित रखना भी ठीक नहीं ||
यह जन आंदोलन तो अब रोकने से भी नहीं रुक सकेगा |
दोषियों को तो दंड दिलाकर ही रहेगा |
अब तो विधि भी बलात्कारियों को फांसी दिने से रोक सकेगी |
किसी भी तरह का बहाना बनाकर उन पापियों को बचा सकेगी ||
यह आन्दोलन अब संपूर्ण देश में क्रांति का रुप ले चुका हैं |
मृत्यु दंड की धारा भी अब तो पार कर ही चुका है |
अब कोई भी अपराध करने से डरेगा ही डरेगा |

बलात्कारी तो समाज में जीवित नहीं बच सकेगा ||

2 टिप्‍पणियां :

  1. नारी शक्ति को उठाना होदा ... अपना सूनामी खुद ही लाना होगा ... शायद तभी ये समाज जागे ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा हेतु संविधान में परिवर्तन करना होगा |
    बलात्कारियों को कठोर से कठोर सजा दिलाने का प्रावधान रखना होगा |
    नारी शक्ति को स्वयं ही अब कुछ करना होगा , संविधान और कानून को देख लिया ! अब एक्ट करने का समय है ! बढ़िया शब्द

    जवाब देंहटाएं