रविवार, 17 अगस्त 2014

"उद्धव और गोपियाँ "

                                                                                                                                                                                                                                                                                                    

       "उद्धव और गोपियाँ " 
ये भी कोई कायदा है ,वायदा न पूरा किया |
भेजा इक दूत जो अवधूत जैसा लगता |
ज्ञान ध्यान की तो बात करे सात कोस आगे बढ़ |
स्नेहसिक्त बात सुन पीछे पीछे हटता |
वृन्दावन की पवित्र गलियों में वह जोगी हमें आते जाते तकता |
प्रेमसिक्त बातें तो वह बिलकुल भी नहीं समझाता |
ज्ञान धयान मुक्ति की बात तो वह बढ़ चढ़ करता |
गोपियाँ तो है कृष्ण भक्ति में रमी हुई |
ज्ञान  ध्यान मुक्ति योग वे कुछ नहीं समझती |
आन बान शान की वे है चाहत बनी हुई |
कृष्ण भक्ति रस में है आकंठ डूबी हुई |
ज्ञान  ध्यान ब्रम्ह ज्ञान वे नहीं सब जानती |
आज भी गोकुल की गलियों में कृष्ण की बाट ही है जोहती |
वायदा न पूरा किया कृष्ण का यह दोष है |
हम तो रमी है कृष्ण भक्ति रस सागर में |
चाहत नहीं है हमें ज्ञान और मुक्ति की |
पी चुकी है हम कृष्ण भक्ति रस इसी जनम में |
आओ सखी इस जोगी का कमंडल बना दे |
इसे आज मथुरा की राह भी दिखा दे |
वृन्दवन की निकुंजन गलियन में |
इस जोगी को भक्ति का तो पाठ पढ़ा ही दें |
चाहत की राह में तो हम सब एक है |
राधा जी की बात  तो सबसे निराली है |
कृष्ण के प्रेम सिक्त रस की तो वे स्वयं ही प्याली है |
मानती वे अपने को कृष्ण की ही आली है |
बालि सी उमर से ही कृष्ण भक्ति रस में डूबी हुई |
वही तो गोपियन में सर्वशक्तिशाली है |
यमुना के निकुंजन गलियन में बैठी हुई |
भक्तिभरे बगिया की वही इक माली है |
उद्धव ने जाकर जब कृष्ण से गोपियों की बात कही |
डूब गए कृष्ण भी गोपियों के प्यार में |
सूक्ष्म रूप धर के वे पहुंचे वे गोपियों के पास |
राधा को मनाया संग रास भी रचाया |
अनेक रूप धर के गोप गोपियों को भी रिझाया |
कृष्ण का यही सुन्दर मनोहारी रूप सबको सुहाया |
उद्धव की नीरस सी बातें तो किसी को समझ न आई |
दूत के रंग में तो गोपियाँ न रंग पाई |
उद्धव तो समझ गए कृष्ण भक्ति शक्ति को |
ज्ञान कर्म योग सिद्धि छोड़ बैठ गए कृष्ण भक्ति को |
कृष्ण को जगाया और गले से लगाया |
उन्ही की भक्ति रस के गीत गा गा कर सबको सुनाया |

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

स्वतंत्रता दिवस


मन स्वतंत्र तन स्वतंत्र आज स्वतंत्रता दिवस है |
भारत का राष्ट्रीय पर्व है ,शहीदों की शहादत पर हम सबको गर्व है |
आज के ही दिन अर्ध रात्रि के बाद लाल किले पर नेहरू जी ने झंडा फहराया था |
देश वासियों को स्वतंत्रता की घोषणा कर आने वाली समस्याओं से अगाह कराया था |
विभाजन का दंश सबने भोगा झेला व सहलाया था |
भाई से भाई बिछुड़गया था किसी को कुछ भी सूझ न पाया था |
ऐसी स्वतंत्रता पाकर भी भारत कुछ कर नहीं पाया था |
यह तो नेताओं का था षड्यंत्र ,डूब गया था स्वतंत्र शासन तंत्र |
जनता को दिया जा रहा था शांति व अमन का मन्त्र |
वे कर नहीं पा रहे थे दीन दुखियों के दुःख दूर करने का यंत्र |
फिर भी भारतीयों ने वह कठिन समय भी किसी तरह गुजारा |
विस्थापितों ने उस परस्थिति में भी अपना जीवन नए सिरे से संवारा |
की गई थी शरणार्थियों की शासन की ओर से पूरी मदद |
पहुंचाई जा रही थी विस्थापितों यथा समय सरकारी रसद |
बड़े ही दुःखी व संतप्त थे वे लोग जो करते थे पाकिस्तान में सुखों का भोग |
वे उस समय दाने -दाने को हो रहे थे मोहताज |
पर घूम रहे थे सिर पर रख कर नई-नई स्वतंत्रता का ताज
कैसा था वह स्वतंत्रता देवी का आलम ,उन्हें नहीं मिल पा रहा था सालन |
जगह -जगह    दिखाना पड़ता था उनको चालान |
उनका जीना नहीं था यहाँ आसान |
कैसी भगवन की लीला थी |
झेल रही दुःख अपनी ही शीला रोज़ी व् सलमा थी |
हम सबने स्वतंत्र भारत की परिस्थितियां झेली |
फिर भरने लगे बड़े बड़े नेता अपनी अपनी झोली |
शरणार्थी तो कड़ी मेहनत करके बन गए है वैसे के वैसे |
पर मूल निवासी आज भी रह गए है जैसे के तैसे |
स्वतंत्रता की सड़सठवी शताब्दी मनाकर भी वे आज भी है मोहताज |
शहीदों के बच्चे बेकारी बेरोजगारी से है ज़ार ज़ार |
भले ही देश स्वतंत्रता से है आज आगाज़ |
आध्यात्मिक ज्ञान से बन गया है दुनिया का सरताज |
पर गरीबी आज भी दे रही है हमको आवाज़ |
कर दो स्वतंत्र भारत में हमारा भी उद्धार |
आओ शहीदो को याद करें उनकी कुर्बानियों से लोगो को आगाह करें |
जन मानस में स्फूर्ति का संचार करें |

स्वतंत्रता देवी को नतमस्तक होकर प्रणाम करें |

शनिवार, 9 अगस्त 2014

"रक्षा बंधन का त्यौहार "


"रक्षा बंधन का त्यौहार "
रक्षा बंधन का त्यौहार ,भाई बहन के स्नेह का आधार |
धागा तो है केवल सूत्रधार ,पर बंधन जीवन का अनुपम उपहार |
बारह वर्ष तक रहा देवासुर संग्राम ,सभी देव थे त्रस्त और हैरान |
सबने सोचा करना होगा अब प्रयाण, ऐसा था उनका अदभुत अभियान
गया इन्द्र तब बृहस्पति जी के पास |बोला गुरु देव कुछ करो प्रयास |
कैसे होगा दुष्ट राक्षसों का विनाश ,स्वर्ग लोक की रक्षा का दिलाओ विश्वास |
इन्द्राणी ने सुनी जब विपत्ति की गाथा ,घूम गया उनका भी माथा |
बोली प्रियतम चलो आप मेरे साथ ,छू नहीं सकेगा शत्रु आपका गात |
श्रावणी पर्व पर ब्राह्मणो को खूब दान दिया ,विजय हेतु स्वस्ति वाचन का पाठ किया |
रक्षा तंतु बांधा जब इंद्र के हाथ , वज्र सी कठोर बन गई इंद्र की गात |
पाई इंद्र ने विजय श्री किया राक्षसों का सर्व नाश ,इन्द्राणी के सूत्र पर हुवा सबका विश्वास |
तीन धागों से गुंफित यह पर्व विषेश ,देता भाई बहनो के स्नेह का सन्देश |
श्रावणी पर्व की महिमा महान ,सूत्र की शक्ति को जानता है सारा जहान |
भाई की इसमें आन बान और शान ,बहिन भी करती है अपने भाई पर गुमान |
श्रावण मास का यह प्रथम पर्व ,लाता है जीवन में उतकर्ष |
खूब छख कर मिस्ठान विविध ,परस्पर सभी देते है उपहार सहर्ष |
सबका यह पवित्र त्यौहार ,सभी मनाते इसे विशेष सत्कार |
भाई बहिन का देख प्रेमपूर्ण व्यहार ,हो जाता है प्रसन्न सारा परिवार |
इस पवित्र बंधन के पर्व पर ,बहिन को भाई देता है प्रेम पूर्ण वचन |
करेगा वह बहिन की रक्षा आजीवन ,सुन कर सजल हो जाते है बहन के नयन |
पन्ना व कर्मवती की कहानी ,याद है आज भी सबको ज़बानी |
मुग़लों की नहीं चलने दी थी मनमानी ,राखी भेजी थी दोनों ने वे थी सायानी |
मुग़ल भी जानते थे राखी का महत्व ,जंहागीर भी आया था बचाने राज़पूतानी का सतीत्व |
रक्षा सूत्र बना था बड़ा आदर्श व विशिष्ट ,इस बंधन की कहानी सुनी जाती है आज भी सर्वत्र |
मुग़ल  ने जब पन्ना की राखी पाई ,तो मुग़लों की सेना मुगलों पर ही चढ़ आई |
राजपूतों को उन्होंने विजयश्री दिलवाई ,मुगलों ने भी राखी की महिमा सबको बताई |
 हुमायूँ भी कर्मवती की रक्षा को आया ,उसने भी राखी का धर्म निभाया |
राखी का उत्सव सबको है भाया ,सबने राखी के महत्त्व को समझा और समझाया |



शनिवार, 2 अगस्त 2014

तीज

                         
                                                                                         

आओ सखी तीज मनाएं  ,अपने घर आँगन ख़ुशियों से महकाएं |
मधुर मधुर गीत गा कर मन को बहलाए |
तीज माता से सुख सम्पत्ति व सौभाग्य  का आशीर्वाद पाएं |
तीज का आता है मनभावन त्यौहार |
रमणियाँ करती है नख से शिख तक सोलह श्रृंगार |
डोलती रहती है अपने अपने घर द्वार |
प्रिय संग झूला झूलती पेंग बढ़ाती चाहती अपना सुखी संसार |
सावन की पड़ती जब पहली पहली रिम झिम  फुआर |
मन आँगन में छा जाता ख़ुशियों का अम्बार |
मन में उठती मस्त बयार जब आता सावन का तीज त्यौहार |
चारों ओर खिले रहते है फूल हरसिंगार |
सुंगंधित होते है जिससे सबके घरद्वार |
हर घर में होतीहै  घेवरोंकी ज्योनार |
खा कर ख़ुशी मानते है सारे परिवार |
महिलाये मेहँदी रचाती है निज हाथ |
चूड़ियों की सुनी जाती है झंकार |
श्रावण मास का यह प्रथम त्यौहार|
ख़ुशियों का लता है पारावार |
तीज में गौरी माता पूजी जाती है हर घर द्वार

देती है सबको आशीर्वाद भरती है सबके भण्डार |