गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

हे सृष्टि

पृथ्वी दिवस को समर्पित मेरी कविता...


हे सृष्टि तुममें समाहित है समष्टि 
रखो तुम अपनी गरिमा  महान 
तुम ही तो  धरित्री की शान
प्रकृति का तुम अनुपम उपहार
मानव के होते सपने साकार
तुम्हारा है सुन्दर आकर
देख तुम्हारा सुन्दर मधुमय रुप
सृष्टि तुम हो समष्टि के अनुरुप 
सुगन्धित पुष्पों की चढ़ाते धूप
देव भूमि तुमसे है सुरभित 
यही है सबका अभिमत
भावों से भरे है जनमत 
सृष्टि तो जीवन की मिसाल है 
भाव भावनाओं तथा अरमानो का जाल है 
इसकी माटी का चंदन लगाते सब अपने-अपने भाल है 
हे सृष्टि तुमको नमन शत-शत नमन
मत होने दो इसका अतिक्रमण 
वरना रह नहीं पायेगा  तन मन रंजन |

2008 में प्रकाशित कविता संग्रह 'मुश्किल में है बेटियाँ' में से 

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