हे सीते |
राम का ही तो चढ़ा था तुम पर रंग चोखा ||
पर जब तुम धरती में समा गई थीं
तब तो श्रीराम के भी हाथ नहीं आ पाई थीं ||
तुमने जीवन भर यातनायें ही सहीं
तभी तो बनी तुम नारियों की पूज्य महीं |
पर महिषी नहीं बन पाई तुम श्रीराम की
जबकि पत्नी थी तुम अपने प्रिय राम की ||
एक साधारण पुरूष की भाटी तुम पर शक किया
मानते थे जबकि वे तुम्हें अपनी ही प्रिय प्रिया |
फिर क्यों किया उन्होंने तुम्हारा इतना तिरस्कार
पर तब भी तुम्हें अपना राम ही था स्वीकार ||
यह भी सत्य है कि उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को नहीं हेरा
पर तुम्हारी ओर से तो बार-बार मुँह फेरा |
तुमसे अच्छी तो वह उर्मिला ही रही
जो आराम व प्रतिस्ठापूर्वक घर में ही रहीं ||
तुमने तो सदा वनों की यातनायें ही झेली
सदा रही तुम दुखों की हमजोली
तुम्हारा साथ तो श्रीराम भी नहीं दे पाये
वो भी तो धोबी के कहने से बरगलाये ||
जो नहीं कर पाये तुम जैसी नारी का सम्मान
उन्होंने तो बनना था जग में भागवान |
तुम्हारा पातिव्रत धर्म बना उनकी महिमा का आयाम
धरती में समा कर किया तुमने महत्वपूर्ण काम ||
राम भी बन गये थे नारी के मोहताज
सीते- सीते पुकारते रहे थे तुम्हारे सरवाज |
सभी ने देखा उसका विकल परिणाम
नारी जाति आज भी याद करती है गर्व से तुम्हारा नाम ||
पर पूछती है क्यों सही तुमने यातनायें अविराम
क्या इससे पूर्ण हुई थी तुम्हारे पतिव्रत की कामना |
तुम्हारी तो नहीं सुनी गई थी कभी भी कोई
याचना पूर्ण प्रार्थना ||
२०१० में प्रकाशित 'नारी' कविता संग्रह में से
बहुत सुन्दर गहन मनन कराती प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें!