सोमवार, 28 अप्रैल 2014

'मौन की अनुभूतियां' के विमोचन पर


कवियत्री सुनीता चौहान को प्रथम कविता संग्रह 'मौन की अनुभूतियां' के विमोचन पर बहुत बहुत बधाई |

आज २८ अप्रैल २०१४ के दैनिक जागरण में से...




शनिवार, 26 अप्रैल 2014

ट्वन्टी-ट्वन्टी का क्रिकेट

नेता तो सदियों से ही बिकते थे अब तो खिलाड़ी भी बिक रहे हैं |
पैसा ही पैसा पाने के लिए देखो कैसे-कैसे खिलाड़ी आगे बढ़ रहे है |
क्या कमी थी पैसों की कोहली व धोनी को 
जो अपनी अपनी बोली लगवा कर, गाजर मूली की तरह बिक रहे है |
क्या इस तरह ये खिलाड़ी मान व सम्मान पा सकेंगे ?
अपनी-अपनी  बोली लगवा कर कितना धन कमा सकेंगे ?
अब तो नेताओं की तरह इनका भी होगा वैसा ही मान |
गवां देंगे ये अब तक का पाया क्रिकेट से सम्मान |
अगर ये अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाये तो 
क्रिकेट प्रेमी हो जायेंगे निराश |
नहीं रहेगा इन क्रिकेटरों पर उनका विश्वास |
फिर इनको कौन सी टीम अपने में शामिल कर पायेंगी ?
ये भी क्या आने वाली मुसीबतों को झेल पायेंगे ?
ये नहीं जानते क्रिकेट तो है एक बहुत बड़ा जुनून 
यह केवल खेल ही नहीं है यह तो बन जाता है मजबून 
कभी भी कुछ भी इस खेल में हो सकता है |
कोई भी हीरो जीरो पर आउट होकर पैवेलियन लौट सकता है |
धीरे-धीरे घट रही है इस खेल की सीमा 
खिलाडियों को तो करा लेना चाहिए अपना-अपना बीमा
पचास से ट्वेन्टी पर आ गई है क्रिकेट की मात्रा 
न जाने कितने पर समाप्त होगी क्रिकेट की यह यात्रा 
क्रिकेट के खेल का क्रेज दिन प्रतिदिन घट रहा है |
यही तो क्रिकेट प्रेमियों की समझ में नहीं आ रहा है |
फिर भी समय गवां कर देख रहे हैं लोग यह खेल 
दिख रहा हैं देखो अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेटरों का कैसा मेल 
चलो एक दूसरे के प्रति सदभावना तो आयेगी
पर एक दूसरे की कमज़ोरी भी पता लग जायेगी
फिर भी यह खेल मनोरंजन तो करता ही है
हमारे बच्चों को छुट्टियों में खुश व व्यस्त रखता है 

'सप्तपदी' कविता संग्रह में से










गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

हे सृष्टि

पृथ्वी दिवस को समर्पित मेरी कविता...


हे सृष्टि तुममें समाहित है समष्टि 
रखो तुम अपनी गरिमा  महान 
तुम ही तो  धरित्री की शान
प्रकृति का तुम अनुपम उपहार
मानव के होते सपने साकार
तुम्हारा है सुन्दर आकर
देख तुम्हारा सुन्दर मधुमय रुप
सृष्टि तुम हो समष्टि के अनुरुप 
सुगन्धित पुष्पों की चढ़ाते धूप
देव भूमि तुमसे है सुरभित 
यही है सबका अभिमत
भावों से भरे है जनमत 
सृष्टि तो जीवन की मिसाल है 
भाव भावनाओं तथा अरमानो का जाल है 
इसकी माटी का चंदन लगाते सब अपने-अपने भाल है 
हे सृष्टि तुमको नमन शत-शत नमन
मत होने दो इसका अतिक्रमण 
वरना रह नहीं पायेगा  तन मन रंजन |

2008 में प्रकाशित कविता संग्रह 'मुश्किल में है बेटियाँ' में से 

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

भारत को सरताज बना देंगे

हम भारत को दुनिया का सरताज बना देंगे |
हम मर मिटते हैं देश के लिए यह दुनिया को दिखा देंगे |
हम ज्ञान के गोलों से और तर्क की तोपों से 
पाखण्ड  के महलों को मिटटी में मिला देंगे ||

कुदरत ने तो बख्शी है हमें जिंदगी की दौलत |
हम इस जिंदगी में ही कुछ करके दिखा देंगे |
हम देश की बिगड़ी हुई हालत को अब |
खुशहाल बना कर ही सबको बता देंगे ||

हम जानते हैं हममे दुनिया को बदलने की भी ताकत है |
जहां मारेंगे इक ठोकर तो मुर्दो को भी जिला देंगे |
हम अपने ही करिश्मे से दुनियां को बदल देंगे |
हम चाहे तो फूट की डायन को गंगा में बहा देंगे ||

बेबात के झगड़ों में न उलझो मेरे दोस्तों |
मिलजुल के रहो सदा मेरे देश के शेरों |
कायर ही अश्क बहाते हैं हम अपना खून बहा देंगे |
प्यार और मोहब्बत में बड़ी ताकत हैं दुनीया को दिखा देंगे |

हम जुल्म के ठेकेदारों को प्यार और मोहब्बत से |
नफरत की दीवारों को हम सदा के लिए मिटा देंगे |
हम देश के लिए खुद तो मिट कर ही जायेंगे |
पर औरों को भी देश प्रेम का पाठ पढ़ा जायेंगे ||

भूले भटकें देश के नवयुवकों को एकता का सबक सिखायेंगे | 
उन्हें देश के लिए कुर्बानी देने की राह दिखा जायेंगे |
यही तो हमारा मकसद है यही तो इरादा है |
हम अपने भारत को विश्व में महान बना देंगे ||

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

देश की राजनीति

इस देश की राजनीति के कैसे सवाल हैं
जिनसे देश के हर चौराहे पर हो रहा बवाल है
देश के हर नागरिक के मन में मलाल  है
क्यों कर रहा शासन तंत्र अनोखा धमाल है

हम सोचते ही रहे कि अब देश हुआ आजाद है
हम भी पा सकेंगे आप कुर्बानियों का जो प्रसाद है
पर जीवन भर मन में रहा यही अवसाद है
कैसे ले पायेगा कोई इस देश में स्वतंत्रता का स्वाद है

हम ढूंढते ही रहे उसे हमारा ही स्वार्थ था
पर मिल न सका हमें कुछ जो बंटा बेहिसाब था
हमें जो कुछ भी मिला बस वही हमारे नाम था
राजनीति तो नेताओं का ही मुकाम था

आज राजनीति चौराहों पर खेल बन गई
वह तो विचारों को अब सेल कर गई
मन के अरमानों को दलों में दल गई
मिली जुली संस्कृति अब तो जेल बन गई

यहतो देश के नागरिकों का कमाल था
जो झेल रहे नेताओं की ज्यादतियों का धमाल था
इस राह में जनता का तो बुरा हाल था
तालियाँ बजवाना ही उनका बिछाया जाल था

हम भी देख सुन रहे हैं नेताओं को
न कर पाये वे सपने साकार जो दिखाये थे सबका
गरीब तो इस देश में गरीबी की रेखा से नीचे हो गये
अमीरों ने उनके दम से अपने महल खड़े कर दिये

इस देश की राजनीति ने तो किया कमाल है
सड़कों पर कराती है सदा बबाल है
इससे नेताओं के मन में न जरा मलाल है
गरीब जी रहे इस देश में देखो कैसे फटे हाल है |

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

हे सीते

A picture of Sita Ram for hindi poem
हे सीते
हे सीते तुमने जीवन में क्या सुख भोगा 
राम का ही तो चढ़ा था तुम पर रंग चोखा ||
पर जब तुम धरती में समा गई थीं
तब तो श्रीराम के भी हाथ नहीं आ पाई थीं ||

तुमने जीवन भर यातनायें ही सहीं
तभी तो बनी तुम नारियों की पूज्य महीं |
पर महिषी नहीं बन पाई तुम श्रीराम की 
जबकि पत्नी थी तुम अपने प्रिय राम की ||

एक साधारण पुरूष की भाटी तुम पर शक किया 
मानते थे जबकि वे तुम्हें अपनी ही प्रिय प्रिया |
फिर क्यों किया उन्होंने तुम्हारा इतना तिरस्कार 
पर तब भी तुम्हें अपना राम ही था स्वीकार ||

यह भी सत्य है कि उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को नहीं हेरा 
पर तुम्हारी ओर से तो बार-बार मुँह फेरा |
तुमसे अच्छी तो वह उर्मिला ही रही 
जो आराम व प्रतिस्ठापूर्वक घर में ही रहीं ||

तुमने तो सदा वनों की यातनायें ही झेली
सदा रही तुम दुखों की हमजोली 
तुम्हारा साथ तो श्रीराम भी नहीं दे पाये 
वो भी तो धोबी के कहने से बरगलाये ||

जो नहीं कर पाये तुम जैसी नारी का सम्मान 
उन्होंने तो बनना था जग में भागवान |
तुम्हारा पातिव्रत धर्म बना उनकी महिमा का आयाम 
धरती में समा कर किया तुमने महत्वपूर्ण काम ||

राम भी बन गये थे नारी के मोहताज 
सीते- सीते पुकारते रहे थे तुम्हारे सरवाज |
सभी ने देखा उसका विकल परिणाम 
नारी जाति आज भी याद करती है गर्व से तुम्हारा नाम ||

पर पूछती है क्यों सही तुमने यातनायें अविराम 
क्या इससे पूर्ण हुई थी तुम्हारे पतिव्रत की कामना |
तुम्हारी तो नहीं सुनी गई थी कभी भी कोई 
याचना पूर्ण प्रार्थना ||

२०१० में प्रकाशित 'नारी' कविता संग्रह में से

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

तुलसी

तुलसी ने गाई राम की गाथा
राम ने था हनुमान को साधा
हनुमान ने भी राम को अपने तन मन से बांधा
यही तो है रामायण की सारी कथा

आज घर- घर रामायण गाते हैं
राम की कथा सुनाते हैं
अपने पापों से तर जाते हैं
तभी राम नाम का प्रसाद पाते हैं

रामायण की दोहा चौपाई
आज घर -घर में है छाई
सबके ही मन को है भाई
तुलसी ने की ऐसी कविताई

राम को माना आराध्य अपना
यही था तुलसी का सपना
सच हो गया देखो आज
कलयुग में भी चाहते है राम राज

राम थे एक पत्नी भक्त 
सीता ने भी निभाया पातिव्रत 
दोनों ही महान थे 
कहलाये सबके भगवान थे 

महावीर को भी वह नहीं भूले 
उसी के संग सीता की खोज में जंगल-जंगल डोले 
भाई भरत के सामान ही उनको माना 
हनुमान ने भी राम को अपना आराध्य जाना 

विनयावलि रत्नावलि कविता वलि
हैं तुलसी की रचनायें
जिनमें हैं दास्य भाव की कवितायेँ 
आवो हम सब गा गाकर इन्हें सुनायें

तुलसी ने अष्टमूल में था जन्म लिया 
माता पिता ने तो उन्हें त्याग ही दिया 
प्रिय रत्ना का भी कैसा भाग्य रहा 
तुलसी को दांपत्य सुख नहीं मिला 

प्रताड़ित हुए तुलसी पत्नी से 
निकल पड़े घर बार त्याग घनी रात्री में 
गिरे विक्षिप्त हो कर एक अंधेरे कूएं में 
बचाया स्वयं राम ने आकर 

तभी लिखी गई थी रामचरितमानस 
आराधना में लीन हुये सभी भक्त गण 
घर-घर में होता है रामायण का पाठ 
तन्मय होकर सुनते है हम और आप |


'मुश्किल में है बेटियाँ' कविता संग्रह में से |