हे मानव तुमने जो
जीवन भर जो बोया है ,वही तो काटोगे |
जब बोया बबूल तो
आम कहाँ से खा पाओगे |
जब जीवन भर किसी
को अपना नहीं बनाया तो |
किससे तुम
सहानुभूति की आस रखोगे |
वैसे तो संसार का
नियम यही है |
नफ़रत करोगे तो
नफ़रत ही मिलेगी|
प्यार से किसी से
दो बोल बोलोगे तो |
झोली भर के वही
साथ लेकर जाओगे |
यह शरीर तो शव के
समान है लेकिन |
सद्व्यवहार से
मानव पाता जीवन में मान व सम्मान है |
फिर भी क्यों भूल
जाते है सब की |
नश्वर शरीर को तो
सब को यही छोड़ कर जाना है |
बस केवल आत्मा ही
तो साथ जाती है बस |
वही प्रभु के पास
पहुंच पाती है |
वरना जीना मरना
तो सबको समान है |
सब जानते है यहीं
छूट जाता सारा मान व अपमान है |
हम सब एक आत्मा
ही हैं यहीं सब समझो |
इसके द्वारा सदा
सत्कर्म ही करो |
वही हम सबको भव
से मुक्ति दिलाएगा |
वरना मन यहीं
भटकता रह जायेगा |
तब वह अतृप्त
आत्मा के रूप में डराएगा |
रह रह कर सबको
सताएगा |
अतः मन को रखो सब
शांत |
मत आने दो मन में
विचार विक्रांत |
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