सोमवार, 21 जुलाई 2014

जोबोया है

         
हे मानव तुमने जो जीवन भर जो बोया है ,वही तो काटोगे |
जब बोया बबूल तो आम कहाँ से खा पाओगे |
जब जीवन भर किसी को अपना नहीं बनाया तो |
किससे तुम सहानुभूति की आस रखोगे |
वैसे तो संसार का नियम यही है |
नफ़रत करोगे तो नफ़रत ही मिलेगी|
प्यार से किसी से दो बोल बोलोगे तो |
झोली भर के वही साथ लेकर जाओगे |
यह शरीर तो शव के समान है लेकिन |
सद्व्यवहार से मानव पाता जीवन में मान व सम्मान है |
फिर भी क्यों भूल जाते है सब की |
नश्वर शरीर को तो सब को यही छोड़ कर जाना है |
बस केवल आत्मा ही तो साथ जाती है बस |
वही प्रभु के पास पहुंच पाती है |
वरना जीना मरना तो सबको समान है |
सब जानते है यहीं छूट जाता सारा मान व अपमान है |
हम सब एक आत्मा ही हैं यहीं सब समझो |
इसके द्वारा सदा सत्कर्म ही करो |
वही हम सबको भव से मुक्ति दिलाएगा |
वरना मन यहीं भटकता रह जायेगा |
तब वह अतृप्त आत्मा के रूप में डराएगा |
रह रह कर सबको सताएगा |
अतः मन को रखो सब शांत |

मत आने दो मन में विचार विक्रांत |

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