रविवार, 23 फ़रवरी 2014

अहसास

गुनगुनाती धूप तथा ढलती साँज का सफ़र |
आज भी काटे नहीं कट पाता है |
तुम तो नहीं होते हो |
तुम्हारा अहसास तुम्हारी याद दिलाता है ||

सुबह चाय की प्याली जब पीती हूँ |
शक्कर मत डालना सुनाई देता है |
दोपहर का भोजन जब मेज पर लगता है |
तुम्हारी कुर्सी खाली रहती है ||

अनुशासन प्रिय तुम नहीं थे |
पर दूसरों को अनुशासित रखने में दक्ष थे |
किसी भी काम में जरा लापरवाही हो |
तुम देख नहीं पाते थे ||

भोजन परोसने पर 'तुम भी आओ '|
कहना अन्दर तक तरल कर जाता था |
पर तुम्हारा असभ्यतापूर्वक खाना |
हमें जरा नहीं सुहाता था  ||

तुम न जाने कहां चले गये |
तुम्हारी कोई कुशल खबर भी तो नहीं आई |
लोग कहते है तुम स्वर्गवासी हो गये हो |
क्या तुम्हे क्वार्टर मिल गया तुम्हारी आई डी तो यही है ||

तुम जीवन भर सरकारी क्वार्टर में रहे |
तुम्हें तो वहां भी अच्छा ही लग रहा होगा |
तुम सदा ही स्वतंत्र रहे हो अब तो |
सारे बंधन तोड़ कर चले गये हो ||

हम जानते हैं जाने वाले लौट कर नहीं आते हैं |
फिर भी हम तुम्हारी बाट जोह रहे हैं |
तुम तो जीवन भर मस्त जीवन जीते रहे |
परिवार कि कभी तुमने चिंता नहीं की ||

तुम तो परिवार के लिए तब भी दूर थे |
आज तो बहुत दूर चले गये हो |
बस तुम्हारे नाम का एक अहसास हैं |
जो जीवन भर हमारे साथ चल रहा हैं चलता रहेगा ||




यह काव्य २०१३ में प्रकाशित काव्य संग्रह 'अधूरा अहसास ' से ली गयी हैं |



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