शिवरात्रि के इस पावन पर्व पर नाथो के नाथ केदारनाथ को मेरा शत शत नमन |१६ जून को उत्तराखंड के केदारनाथ में आने वाले सैलाब में बह गयी उन शिवभक्त आत्माओंको मैं इस रचना द्वारा श्रद्धा पूर्वक श्रध्धांजलि अर्पित करती हूँ |
नाथों के नाथ केदारनाथ ने अपने भक्तों को अनाथ कर दिया |
कैसा सैलाब आया उसमें सब कुछ बह गया |
जो बच गये हैं वे अपने जीवित रहने का जश्न मनायें |
या जो बह गये हैं उनके गम को मन से दूर कर पायें ||
अपनी आँखों के सामने उन्होंने अपनों को बहते देखा है |
अपने पूरे परिवार सगे सम्बन्धियों को जल समाधि लेते देखा है |
वे कैसे उस दहशत से उबर पायेंगे |
क्या किसी प्रकार की राहत सामग्री पाकर वे अपना गम भूल जायेंगे ||
अपनों का दर्द तो अब उनके लिए नासूर बन गया है |
यह असीम दर्द तो उनके दिल दिमाग में रिस रहा है |
अपनों से बिछुड़ने का दर्द सहना आसान नहीं होता |
अपने जिगर के टुकड़ो को खोकर सहा नहीं जाता ||
क्या नजारा रहा होगा उस प्रलयंकारी विप्लव का |
जहां से सुरक्षित बचने का कोई रास्ता नहीं था |
चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था |
भक्तों की गुहार भगवान नहीं सुन रहा था |
बहुत सी राहत सामग्री भी भेजी जा रही थी |
वह न जाने किसके हिस्से में आ रही थी |
ऐसे आपत्ति काल में सामाजिक संस्थायें भी पूरा - पूरा सहयोग देती हैं |
वे भी राहत कार्य में लगन सी जुटी हुई हैं ||
अन्य प्रदेशों सी पूरा सहयोग मिल ही रहा है |
बचे हुये लोगों को शरणार्थी शिविरों में रखा जा रहा है |
पर सरकार से दी जाने वाली सहायता से लोग खुश नहीं है |
वे आपदा को नहीं भुला पा रहे है पुनर्स्थापन की मांग कर रहे हैं ||
यह कविता २०१३ में प्रकाशित काव्य संग्रह 'अधूरा अहसास ' से ली गयी हैं |
नाथों के नाथ केदारनाथ ने अपने भक्तों को अनाथ कर दिया |
कैसा सैलाब आया उसमें सब कुछ बह गया |
जो बच गये हैं वे अपने जीवित रहने का जश्न मनायें |
या जो बह गये हैं उनके गम को मन से दूर कर पायें ||
अपनी आँखों के सामने उन्होंने अपनों को बहते देखा है |
अपने पूरे परिवार सगे सम्बन्धियों को जल समाधि लेते देखा है |
वे कैसे उस दहशत से उबर पायेंगे |
क्या किसी प्रकार की राहत सामग्री पाकर वे अपना गम भूल जायेंगे ||
अपनों का दर्द तो अब उनके लिए नासूर बन गया है |
यह असीम दर्द तो उनके दिल दिमाग में रिस रहा है |
अपनों से बिछुड़ने का दर्द सहना आसान नहीं होता |
अपने जिगर के टुकड़ो को खोकर सहा नहीं जाता ||
क्या नजारा रहा होगा उस प्रलयंकारी विप्लव का |
जहां से सुरक्षित बचने का कोई रास्ता नहीं था |
चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था |
भक्तों की गुहार भगवान नहीं सुन रहा था |
फिर भी कुछ ने जीवन जीने का संघर्ष किया |
कुछ भक्तों ने अपने को ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया |
उन्होंने कैसे वह विनाशकारी घडी झेली होंगी |
मौत से लड़ने की हिम्मत उन्हें कहां से मिली होगी ||
शवों को मलबे से निकला जा रहा था |
उनका डी.एन.ए टैस्ट भी सुरक्षित रखा जा रहा था |
जो लापता थे या मरने वालों की सूचि में थे |
उन्हें पांच-पांच लाख मुआवजा दिया जा रहा था ||
वह न जाने किसके हिस्से में आ रही थी |
ऐसे आपत्ति काल में सामाजिक संस्थायें भी पूरा - पूरा सहयोग देती हैं |
वे भी राहत कार्य में लगन सी जुटी हुई हैं ||
अन्य प्रदेशों सी पूरा सहयोग मिल ही रहा है |
बचे हुये लोगों को शरणार्थी शिविरों में रखा जा रहा है |
पर सरकार से दी जाने वाली सहायता से लोग खुश नहीं है |
वे आपदा को नहीं भुला पा रहे है पुनर्स्थापन की मांग कर रहे हैं ||
यह कविता २०१३ में प्रकाशित काव्य संग्रह 'अधूरा अहसास ' से ली गयी हैं |