शुक्रवार, 20 जून 2014

वृद्ध सज्जनो

                              

                           
वृद्ध सज्जनो अब तो सम्भलो ,अपने मन को कुछ तो बदलो |
समय के प्रवाह को देख कर चलो ,नई पीढ़ी को को देख कर मत उछलो |
अरे तुम कहाँ खो गए , अपनों मैं पराये हो गये
 साँझ ढलने से पाहिले ही सो गए |,अरे तुम क्या थे क्या हो गये |
अपनी बीती उन्हें मत सुनाओ ,अपनी उपलब्धियाँ मत गिनाओ|
उन्हें नहीं तुम से कोई सरोकार ,तुम तो हो गये उनके लिए बेकार |
तुम्हारी बातों पर नहीं करते वे विश्वास ,फिर क्यों रखते हो कोई आस |
तुम्हारे कमरे से आती है उनको बासजब चलती है जोर जोर से तुम्हारी श्वास |
यही तो संसार का नियम है ,जीवन की अवस्था का अधिनियम है |
वह तो किताबों में ही लिखा है, व्यवहारिकता को क्या तुमने नहीं पढ़ा है |
ये टूटे रास्तों पर नहीं चलेंगे ,ये तो आगे ही आगे बढ़ते रहेंगे |
इन्हे तुम न स्पर्श कर सकोगे ,क्यों फिर इनसे आस लगाना चाहोगे |
मुश्किलें झेल कर उन्हें योग्य बनाया ,उन्होंने उसे तुम्हारा फर्ज बताया |
उपलब्धियाँ अपने ही खाते में गिनाई ,क्यों करेंगे वे तुम्हारी सुनवाई |
ये तो थीं तुम्हारी भावी आशाएं ,जो बन गई है अब संवेदनाये |
तुम अपना शेष जीवन बिताओ ,उठो अपने में आशा विश्वास व जोश लाओ |
अपने अनुसार अपना जीवन बिताओ ,मनन चिंतन में धयान लगाओ |
स्वयं में कितना बदलाव पाओगे ,नव उमंग -तरंग से भर जाओगे |
न रहो किसी पर आश्रित ,न समझो स्वयं को निराश्रित |
हम सबका है एक परिवार ,मिलो बैठो करो विचार |
मत समझो अपने को मुर्दा ,हटाओ असमर्थता का पर्दा |
झाड़ो अपने ऊपर पड़ा गर्दा ,तय करना है अभी लम्बा रास्ता |
शेष जीवन समाज सेवा में लगाओ ,धूप सेंक कर समय व्यर्थ न गँवाओ |
नहीं है यह समय आराम का ,नेहरू जी ने  कहा है यह समय है काम का |
तुमसे कहनी है एक बात ,अप्रिय वाणी को दो विराम |
करने दो बच्चों को स्वतंत्र रूप से काम ,उन्हें पाने है जीवन में नए नए आयाम |
जीतो प्रेम से सभी का मन हिल-मिल कर रहो बच्चो के साथ खेलो कैरम |
स्वयं बदलेगा तुम्हारा भी जीवन क्रम ,खुशहाल होगा सारा घर आँगन |
संसार में वृद्धो की दशा है सामान ,बिरले ही पाते है परिवार में मान सम्मान |
छोड़ो अपनी असमर्थता का गुमान ,क्यों समझते हो अपने को बेकार सामान |
अपना आशियाना स्वयं बनाओ ,अपना घर नए सिरे से सजाओ |
उसमे नया सामान डलवाओ ,अपने कमरे को नए पर्दो से सजाओ |
कभी तुम्हारे ऑफिस से लौटने की राह देखी जाती थी ,अब छूठ के रास्ते ढूंढे जाते है |
हम सब की यही कहानी है ,बैठ कर एक दूसरे को सुनानी है |
आगे बढ़ो अपना भाग्य बनाओ ,जीवन सुख शांति से बिताओ
मत रखो किसी से कोई  आशा ,दूर करो मन की निराशा |
जिन वृद्धो को नहीं मिलता सम्मान ,वे सहते है जीवन में अपमान |
हमसे जुड़े वे आकर ससम्मान ,हम करेंगे एक दूसरे का आदर मान |
खँगालो अब अपना जीवन ,वही दिलाएगा तुम्हे आश्वासन |
घर में ही लगाओ तुम आसन ,मिलेगी शांति परम पावन|
आओ अपने घर लौट आओ दौड़ नहीं सकते तो चल कर ही आओ |
इधर उधर की बातों में मत भरमाओ ,अपना जीवन सुख मय बनाओ |  
डूबते सूर्य को नहीं करते नमस्कार ,इसीलिए होता है बुजुर्गो का तिरस्कार |
भूल गए सब आचार विचार ,तभी तो बजुर्गो का नहीं कर पाते सत्कार |
हम सब एक दूसरे के लिए हैं विशिष्ट ,तभी तो कहलाते हैं नागरिक वरिष्ठ |
हम तो सदा से ही बने रहे सबके प्रति शिष्ट |हमने नहीं किया किसी का भी कभी अनिष्ट |
अरे बुजर्गो कल की बात तुम्हे याद नहीं ,बरसो की बात करते हो |
मरने से पाहिले मत सोचो मृत्यु ,जीवन में दुनिया को नए सिरे से देखो |
आओ ऐसा कानून बनवायें वृद्धो को उनके बच्चे उनको घर से न निकलवाए |
वरिष्ठ नागरिक दिवस की यह सौगात ,आओ हम सब मिल बैठ करे इस विषय पर बात |
समस्याएं सुलझेंगी सब एक साथ ,मिलेगी सबको शांति जब करेंगे एक दूसरे से संवाद |
                                                                                                                                                               -सवि
 

सोमवार, 16 जून 2014

श्रद्धांजलि

                            


 
                                 श्रद्धांजलि

                              अपने  पूज्य पिताजी  को
मेरे  पूज्य  पिताजी  थे  बड़े  गुण  वान  ,रूद्र  दत्त  शास्त्री  था  उनका  नाम  |
करती   हूँ  में  सदा  उन्हें  प्रणाम  ,पुष्पांजलि  अर्पित  करती  हूँ  ससम्मान  |
पिता  थे  उनके  पंडित  विद्यादत्त  जी  महान  ,
माता  लीला  वती  जी  को  वे  करते  थे  प्रतिदिन  प्रणाम  |
ग्राम   नौटियाल  पट्टी  गग्वाडस्यूं   के  थे  वे  निवासी  ,पर  बचपन  में  ही  बना  दिए  प्रवासी  |
पिता  श्री   पटवारी  थे  जौनसार  ,सभी  करते  थे  उनका  आदर  सत्कार  |
मानते  थे  उन्ही    को  ही  अपनी  सरकार  ,वाही  से  जुड़े  ऋषि  दयानद  जी  के  विचार  |
अपने  बड़े  ते  को  पड़ने  भेजा  गुरकुल  ,ताकि  ऊँचा  कर  सके  अपना  कुल  |
तपाया   पुत्र ने  शिक्षा  प्राप्ति  हेतु  अपना  जीवन  सकुल  ,निभाया   ब्रम्हचर्य  का  संकल्प  |
बहुत  छोटी  अवस्था  में  भेजा  था  उन्हें  गुरकुल  ,जहा   पाई  उन्होंने  शिक्षा  व  मिल i वाही  से  दीक्षा   |
स्वामी   श्रद्धानन्द   जी  के  वे  शिष्य  बने  ,अर्पित  किया   जीवन  आर्य  धर्म  के   लिए  |
ज्वाला  पर  गुरुकु l में  गुरु  के  सन्मुख किया  संकल्प  ,समर्पित  किया  जीवन  आर्य  धर्म  के  प्रचार  के  लिए 
वेदो  के  प्रचार  में  वे  सदा  रहे  सफल  ,शास्त्रार्थ   में  कोई  नहीं  था  उनका  विकल्प  |
वे  थे  महान  वेदो  के   ज्ञानी  ,योगासन  प्राणायाम   करते  थे  वे  ध्यानी  |
जीवन  में  रहे  वे  बड़े  ही  मानी  ,उनकी  विद्व्ता  का  नहीं  था  कोई  सानी  ||
गुरकुल  से  जब  दीक्षा  पाई  ,तब  उन्हें  घर  की  सुधि   आई  |
नंगे  पावं  मुंडा   सिर वे  अपने  घर   ए  ,परिवार  वाले  भी  उन्हें  पहिचान  न  पाये  |
बहिनो  ने  कहा  माता   से  एक  जोगी  आया  है  ,गावं   के  किनारे  बैठा  हमारा  घर  पूछ  रहा  है  |
वह  वंहा  पर  बैठा  पढ़ता  रहता  है  ,पर  कुछ  कुछ  हमारे   छोटे  भाई  जैसा  दिखता  है  |
दोेड़ी  दोेड़ी  आई  माता  जोगी  के   पास  ,जो   बैठा  था  खेतो  के  किनारे  नदी  के  पास  |
साफ  कर  रहा  था  वंहा  पर  उगी   घास   , वंहा  पर  कोई  नहीं  था  उसके  आस  पास  |
जोगी  के  पास  जाकर  बैठ गयी  थी  माता  ,बोली  हे  जोगी  इस  गांव  से  तुमहरा  क्या  है  नाता|
यहाँ  तो  जोगियों  का  सदा  लगा  रहता  है  ताँता  ,क्या  है  यहाँ   कोई  तुम्हारी  माता  पिता  या  भ्राता  |
प्रभु  की   थी  कैसी अनोखी  लीला  ,अपने  ही  बेटे   को  नहीं  पहिचान  पाई  माता  लीला  |
बोली  बेटा  बताओ  तुम  हो  कोण  ,क्यों   बैठे  हो  यहाँ  पर  हो  कर  मोन ?|
तभी  पिता  आए खेतो   से  निबट   ,देखा  एक  साधु  बैठा  है  पत्नी  के  निकट  |
दिखता  था  वह  ब्रम्हचारी    गजब  ,लगता  था  किसी  सोच  में विकट  |
पिता  जब  गए   जोगी  के  पास  ,रखा  उन्होंने  अपने   माथे  पर   हाथ  |
बोले  लीला   यह  तुम्हारा  ही  जाया  hai  ,ईश्वर  की  कृपा  से  बेटा  गुरुकुल  से  पढ़   कर  घर  आया  है  |
तब  पुत्र  ने  किया  माता  पिता  को  दंडवत  प्रणाम  ,पिता  ने  दिया   अपने  पुत्र  को  आयाम |
माता  ने  बड़े  प्रेम  से  बेटे  को  गले  लगाया   ,वर्षो  बाद  अपना  वात्स्ल्य  दर्शाया  |
घर  ले  जा  कर  भाई  बहिनो  से  उसे  मिलवाया  , तुरंत  एक  नाई  बुलवाया |
बेटे को  गंगा  स्नान  करवाया  ,तब  जाकर  बेटे   ने  हवन  करके  ही  भोजन  खाया  | |
बेटे  ने  जब  देखि  घर  की  दशा  ,वह  पुनः  खेतो  की  और  जाने  को  विवश  हुवा  |
पिता  ने  अपने  ही  आँगन  में   एक  झोपड़ी  बनवाई  ,जिसमे  बेटे  की  खाट लगवाई  |
सोचा  कैसे  इसे  गृहस्थी  में   प्रवेश  करवाये  ,किसको  विवाह  का  सन्देश   भिजवाये  |
तभी  पंडित  जी  लेकर  आये  जन्मपत्री  ,श्री  बिंदुमाधव  जी  की थी   एक  कुंवारी  पुत्री  |
माँ बहिनो की थी वह प्यारी ,पिता की सेवा करती थी बेचारी |
सद्य  मातृ मृत्यु सही  थी उसने  भारी, घर की थी उस पर पूरी जिम्मेदारी|
पटवारी जी ने भिजवाया  सन्देश  मान गए नाजिर जी उनका आदेश |
दोनों को ही थी एक दूसरे की दरकार,करने लगे वे पत्र ववहार |
                                                                                                                   सवि